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Faridabad| ध्यान-कक्ष में उपस्थित बच्चों को आज मानव जीवन की अमूल्य निधि चरित्र के विषय में बताते हुए कहा गया कि चरित्रवान ही उत्तम मनुष्य कहलाने के योग्य होता है 1योंकि वह अपने चाल-चलन पर नियंत्रण रखते हुए सदा अच्छा सोचता, बोलता व करता है। वह जानता है कि अच्छे स्वभाव, व्यवहार और शील का समन्वित रूप ही एक मानव के सदाचारी होने का प्रतीक होता है और अगर कोई मानव अपने जीवनकाल में ऐसा आचरण करने में दक्ष नहीं होता तो उसका चरित्र बिगड़ जाता है। वह यह भी जानता है कि चरित्र बिगड़ा तो जीवन व्यर्थ हो जाएगा 1योंकि सदाचारिता के विपरीत व्यवहारिकता छल-कपट पूर्ण होती है जो आपस में लड़ाई-झगड़े व एक दूसरे को धोखा देकर अपना स्वार्थ सिद्ध करने हेतु दूसरों का नुकसान व अनिष्ट करने की बात होती है। इसके अतिरिक्त उन्हें याद रखने को कहा गया कि एक दुश्चरित्र मानव ही किसी व्यक्ति के विषय में झूठी बाते फैला कर व ईर्ष्या पूर्ण अलोचना द्वारा उसे समाज की दृष्टि में गिराने का प्रयत्न करता है। अत: हमें श्रेष्ठ व्यक्ति बन अपने जीवन-चरित्र को सुंदर बनाने के लिए राम और कृष्ण आदि युग-पुरुषों के महान व ईश्वर प्रदत्त मानवता अनुरूप जीवन-चरित्रों का अनुकरण करने में ही अपनी उन्नति व यश-कीर्ति समझनी चाहिए। इस हेतु हमारे लिए आवश्यक है कि हम निजी तौर पर अपना चरित्र-विश्लेषण करें और जो भी चरित्रहीनता यानि दुराचारिता व व्यभिचारिता के लक्षण अपने अन्दर नजर आए, उनको स्मृति में रखते हुए इस तरह से खुद पर आत्मनियंत्रण रखें कि यह भूल फिर से कभी भी न हो। यही बुराई से बचने व इस क्रिया द्वारा आत्मसुधार कर अच्छे व नेक इंसान बनने का उपाय है।
सब इंसानियत में बने रहें उसके लिए सबको सुझाव दिया गया कि अपने जीवनकाल में जो भी करना वह जनहित को ध्यान में रखकर ही करना यानि भूलकर भी कोई ऐसा बुरा काम मत करना जिससे अपना, परिवार व समाज का नैतिक पतनता के रूप में कोई नुकसान हो। कहा गया कि अगर ऐसी भूल करी तो यह अंतर्निहित मानवता की हिंसा करने के समान होगा। ऐसा होने पर निश्चित ही आप दुराचारिता की गर्त से कभी भी निकल नहीं पाओगे और इसी कारण कई जन्मों के अच्छे कर्मों के फलस्वरूप मिले इस मानव जन्म को व्यर्थ ही खो दोगे।अंत में बच्चो को कहा गया कि चरित्रवान बनने के लिए भौतिक ज्ञान के साथ-साथ धार्मिक शिष्यवृत्ति द्वारा आत्मज्ञान प्राप्त कर आत्माज्ञानी बनो और उस जीवनपयोगी ज्ञान के प्रयोग द्वारा आहार व भावात्मक रूप से सात्विक धारणा करना सुनिश्चित करो। लेश मात्र भी धारणा इसके विपरीत न हो, इसके लिए खुद पर संयम रखने में सक्षम बनो। तभी इस यत्न द्वारा सदा प्रसन्नचित्त रहते हुए इस जीवन का आनन्द भोग सकोगे। बच्चों ने कहा कि हमें यहाँ आकर बहुत अच्छा लगा। हम निश्चित ही जो यहाँ हमें समझाया गया है उसे खुद धारेंगे व सबको इस स्कूल के विषय में बताकर सद्ज्ञान लेने के लिए प्रेरित करेंगे।
अंत में उपस्थित बच्चों व अध्यापकों को कैमपस के मु2य द्वार से लेकर ध्यान-कक्ष की शोभा व निर्मित बनावट की महत्ता से परिचित कराते हुए बताया गया कि इस ‘ध्यान-कक्ष’ से हर मानव को मानवता धर्म पर मजबूती से डटे रहने के लिए समभाव-समदृष्टि की युक्ति अनुसार सजन-भाव की विद्या प्रदान की जाती है। यह विद्या अपने आप में ऐसी श्रेष्ठ विद्या है जिसके प्रयोग द्वारा आदि काल के इंसान निष्कामता से मिलजुल कर व शांति से जीवन जीने योग्य बन पाए। उन्हें बताया गया कि यही तो वास्तव में सच्चाई-धर्म का रास्ता है जिस पर अग्रसर होने के लिए आज के समयकाल में हर छोटे-बड़े इंसान को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है ताकि समपूर्ण मानव जाति एक अच्छे व नेक इंसान की तरह जीवन जीने योग्य बने। कहा गया कि इस विद्या को अमल में लाने से ही इस घोर कलियुग में मानवों के दिल और दिमाग पर छाए हुए, द्वि और द्वेष, जो मु2यत: आपसी वैर-विरोध और मानसिक तनाव के कारण है, उनसे छुटकारा मिल सकेगा और सभी इंसान एकता, एक अवस्था में रहते हुए शांति से जीवन का आनंद उठा पाएंगे। इस पर बच्चों व उनके साथ आए अध्यापकों ने सतयुग दर्शन ट्रस्ट के इस यत्न को सराहते हुए कहा कि उनके विचार से मानव के चारित्रिक उत्थान हेतु आज इसी प्रकार के स्कूल जगह-जगह पर खोलने की आवश्यकता है ताकि हर इन्सान सभी अनिष्टों के हेतु दुराचार, भ्रष्टाचार व व्यभिचार से उबर सबके साथ सजनता का व्यवहार करने के योग्य बन सके।
Faridabad| ध्यान-कक्ष में उपस्थित बच्चों को आज मानव जीवन की अमूल्य निधि चरित्र के विषय में बताते हुए कहा गया कि चरित्रवान ही उत्तम मनुष्य कहलाने के योग्य होता है 1योंकि वह अपने चाल-चलन पर नियंत्रण रखते हुए सदा अच्छा सोचता, बोलता व करता है। वह जानता है कि अच्छे स्वभाव, व्यवहार और शील का समन्वित रूप ही एक मानव के सदाचारी होने का प्रतीक होता है और अगर कोई मानव अपने जीवनकाल में ऐसा आचरण करने में दक्ष नहीं होता तो उसका चरित्र बिगड़ जाता है। वह यह भी जानता है कि चरित्र बिगड़ा तो जीवन व्यर्थ हो जाएगा 1योंकि सदाचारिता के विपरीत व्यवहारिकता छल-कपट पूर्ण होती है जो आपस में लड़ाई-झगड़े व एक दूसरे को धोखा देकर अपना स्वार्थ सिद्ध करने हेतु दूसरों का नुकसान व अनिष्ट करने की बात होती है। इसके अतिरिक्त उन्हें याद रखने को कहा गया कि एक दुश्चरित्र मानव ही किसी व्यक्ति के विषय में झूठी बाते फैला कर व ईर्ष्या पूर्ण अलोचना द्वारा उसे समाज की दृष्टि में गिराने का प्रयत्न करता है। अत: हमें श्रेष्ठ व्यक्ति बन अपने जीवन-चरित्र को सुंदर बनाने के लिए राम और कृष्ण आदि युग-पुरुषों के महान व ईश्वर प्रदत्त मानवता अनुरूप जीवन-चरित्रों का अनुकरण करने में ही अपनी उन्नति व यश-कीर्ति समझनी चाहिए। इस हेतु हमारे लिए आवश्यक है कि हम निजी तौर पर अपना चरित्र-विश्लेषण करें और जो भी चरित्रहीनता यानि दुराचारिता व व्यभिचारिता के लक्षण अपने अन्दर नजर आए, उनको स्मृति में रखते हुए इस तरह से खुद पर आत्मनियंत्रण रखें कि यह भूल फिर से कभी भी न हो। यही बुराई से बचने व इस क्रिया द्वारा आत्मसुधार कर अच्छे व नेक इंसान बनने का उपाय है।
सब इंसानियत में बने रहें उसके लिए सबको सुझाव दिया गया कि अपने जीवनकाल में जो भी करना वह जनहित को ध्यान में रखकर ही करना यानि भूलकर भी कोई ऐसा बुरा काम मत करना जिससे अपना, परिवार व समाज का नैतिक पतनता के रूप में कोई नुकसान हो। कहा गया कि अगर ऐसी भूल करी तो यह अंतर्निहित मानवता की हिंसा करने के समान होगा। ऐसा होने पर निश्चित ही आप दुराचारिता की गर्त से कभी भी निकल नहीं पाओगे और इसी कारण कई जन्मों के अच्छे कर्मों के फलस्वरूप मिले इस मानव जन्म को व्यर्थ ही खो दोगे।अंत में बच्चो को कहा गया कि चरित्रवान बनने के लिए भौतिक ज्ञान के साथ-साथ धार्मिक शिष्यवृत्ति द्वारा आत्मज्ञान प्राप्त कर आत्माज्ञानी बनो और उस जीवनपयोगी ज्ञान के प्रयोग द्वारा आहार व भावात्मक रूप से सात्विक धारणा करना सुनिश्चित करो। लेश मात्र भी धारणा इसके विपरीत न हो, इसके लिए खुद पर संयम रखने में सक्षम बनो। तभी इस यत्न द्वारा सदा प्रसन्नचित्त रहते हुए इस जीवन का आनन्द भोग सकोगे। बच्चों ने कहा कि हमें यहाँ आकर बहुत अच्छा लगा। हम निश्चित ही जो यहाँ हमें समझाया गया है उसे खुद धारेंगे व सबको इस स्कूल के विषय में बताकर सद्ज्ञान लेने के लिए प्रेरित करेंगे।
अंत में उपस्थित बच्चों व अध्यापकों को कैमपस के मु2य द्वार से लेकर ध्यान-कक्ष की शोभा व निर्मित बनावट की महत्ता से परिचित कराते हुए बताया गया कि इस ‘ध्यान-कक्ष’ से हर मानव को मानवता धर्म पर मजबूती से डटे रहने के लिए समभाव-समदृष्टि की युक्ति अनुसार सजन-भाव की विद्या प्रदान की जाती है। यह विद्या अपने आप में ऐसी श्रेष्ठ विद्या है जिसके प्रयोग द्वारा आदि काल के इंसान निष्कामता से मिलजुल कर व शांति से जीवन जीने योग्य बन पाए। उन्हें बताया गया कि यही तो वास्तव में सच्चाई-धर्म का रास्ता है जिस पर अग्रसर होने के लिए आज के समयकाल में हर छोटे-बड़े इंसान को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है ताकि समपूर्ण मानव जाति एक अच्छे व नेक इंसान की तरह जीवन जीने योग्य बने। कहा गया कि इस विद्या को अमल में लाने से ही इस घोर कलियुग में मानवों के दिल और दिमाग पर छाए हुए, द्वि और द्वेष, जो मु2यत: आपसी वैर-विरोध और मानसिक तनाव के कारण है, उनसे छुटकारा मिल सकेगा और सभी इंसान एकता, एक अवस्था में रहते हुए शांति से जीवन का आनंद उठा पाएंगे। इस पर बच्चों व उनके साथ आए अध्यापकों ने सतयुग दर्शन ट्रस्ट के इस यत्न को सराहते हुए कहा कि उनके विचार से मानव के चारित्रिक उत्थान हेतु आज इसी प्रकार के स्कूल जगह-जगह पर खोलने की आवश्यकता है ताकि हर इन्सान सभी अनिष्टों के हेतु दुराचार, भ्रष्टाचार व व्यभिचार से उबर सबके साथ सजनता का व्यवहार करने के योग्य बन सके।