Yashvi Goyal
Faridabad| मनोदैहिक विकार ऐसी बीमारियां होती हैं, जिनमें मन और शरीर दोनों के विकार शामिल होते हैं। यह विकार शारीरिक असंतुलनों की अभिव्यक्ति होते हैं, जिनमें भावनात्मक घटकों का एक मजबूत प्रभाव होता है।
#लक्षणों का नहीं रोग का उपचार करना
वर्तमान समय में लोग दवाइयों और पूरकों की सहायता से स्वयं को आरोग्य प्रदान करने के लिए बहुत कोशिश करते हैं। लेकिन रोगों का मूल कारण मन में होता है। सभी रोगों का जन्म पहले मानसिक स्तर पर होता है और बाद में ये शारीरिक स्तर पर प्रकट होते हैं।
आरोग्य की एक नई और अद्वितीय अवधारणा साइको न्यूरोबिक्स सभी प्रकार के मनोदैहिक रोगों के निदान में प्रभावी है।
जब आप रोगों से परेशान होकर एक डॉक्टर के पास जाते हैं तो वह भी कहता है कि स्वास्थ्य को पुन: सामान्य स्थिति में लाने के लिए परमात्मा में विश्वास होना काफी आवश्यक है। परमात्मा में यही दृढ़ विश्वास सिग्फा आरोग्य की मूल कुंजी है। सिग्फा रोगों का उपचार उनकी जड़ों तक पहुंचकर करती है।
#साइको न्यूरोबिक्स क्या है?
साइको न्यूरोबिक्स ऐसे अभ्यास हैं, जिसमें हम अपने मन को आत्मिक ऊर्जा के सर्वोच्च स्रोत ईश्वर से जोड़ते हुए न्यूरो कोशिकाओं में आत्मिक ऊर्जा प्रेषित करते हैं। इन सभी गतिविधियों में हमारा मन शामिल रहता है। अन्य सभी व्यायामों में यांत्रिक या शारीरिक गतिविधियां शामिल होती है किंतु यहां सर्वशक्तिमान ईश्वर से आने वाले विभिन्न रंगों की किरणों की वर्षा का मानसिक चित्रण सर्वाधिक महत्व रखता है। रंगों की वर्षा का मानसिक चित्रण अस्सी प्रतिशत से अधिक कारगर होता है।
#साइको न्यूरोबिक्स का इतिहास
साइको न्यूरोबिक्स की उत्पत्ति का मूल मेरे द्वारा सर्वशक्तिमान परमात्मा से पूछे गए एक प्रश्न में निहित है, जिसे मैंने अपने जीवन के मुश्किल समय में उनसे पूछा था। मैंने उनसे यह प्रश्न पूछा था कि ‘‘स्वास्थ्य और खुशी का रहस्य क्या है?’’ आप स्वयं अपने जीवन की गहराई में जाते हुए इस प्रश्न की प्रासंगिकता की जांच कर सकते हैं। आज चारों तरफ धन संपदा की तो बहुतायत है लेकिन उसका उपभोग करने के लिए जो सबसे महत्वपूर्ण कारक है, वह स्वास्थ्य है और आज इसकी भारी कमी है।
इस प्रश्न का उत्तर देते समय, उन्होंने मेरे राजयोग ध्यान की समाधि वाली अवस्था में दृष्टि के मायम से एक ऐसा परिदृश्य दिखाया। उस परिदृश्य में, मैं ऐसा देख पाने में सक्षम था कि ईश्वरीय जीवात्माएं लयबद्घ नृत्य (रास) कर रही थीं। रास करते समय रंगीन किरणों के विभिन्न प्रकार (रंग) उनके शरीर पर गिर रहे थे और संगीत (नाद) इतना मधुर था, जिनका शब्दों में वर्णन किया जाना संभव नहीं है। यह वास्तव में मेरे लिए एक अद्भुत दृश्य था।
ये रास, रंग और नाद की सहायता से देवताओं द्वारा किया जाने वाला न्यूरोबिक्स नृत्य था। इसी नृत्य के कारण वे सदा स्वस्थ और सुखी रहते हैं।
#एरोबिक बनाम न्यूरोबिक्स नृत्य
जैसे-जैसे समय गुजरता गया, रास का विभाजन अलग-अलग शास्त्रीय नृत्यों और विभिन्न मुद्राओं में हो गया। ध्वनि अलग-अलग संगीत थेरेपी में बंट गई। रंग से धीरे-धीरे कलर थेरेपी, क्रोमोथेरेपी और जेमोथेरेपी की शुरूआत हो गई। इस प्रकार रास, रंग और नाद के बीच जो एक समन्वय था, वह खत्म होता चला गया और इन सबका लोगों की जीवनशैली पर काफी गहरा प्रभाव पडऩे लगा तथा उनमें बीमारी का प्रार्दुभाव होना शुरू हो गया।
आज के समय में एरोबिक्स नृत्य की परंपरा है। एरोबिक नृत्य में हम संगीत बजा देते हैं और उस संगीत के साथ बिना किसी लय और तालमेल के हम कूदते हैं। यह पूर्णतया शारीरिक व्यायाम होता है तथा इसमें लय और सुर की संपूर्ण अनुपस्थिति होती है।
उसके बाद परमात्मा द्वारा यह बताया गया कि प्राचीन भारत में स्वस्थ और सुखी जीवन का रहस्य न्यूरोबिक्स नृत्य होता है। यह समग्र स्वास्थ्य के लिए किया जाने वाला पूर्ण नृत्य था, जिसे मन में आत्मिक ऊर्जा के प्रवाह को सुनिश्चित किए जाने के लिए तथा न्यूरो कोशिकाओं में भौतिक ऊर्जा को पे्रषित करने के लिए किया जाता है। दैवीय जीवात्माओं द्वारा इस नृत्य को मन की खुश और आनंदित अवस्था के साथ एक उचित ताल और कदमों के समन्वय, हस्त मुद्राओं के उचित समायोजन से पूर्ण आनंद प्रदान करने के लिए किया जाता था।
रास, रंग और नाद के एकीकरण से साइको न्यूरोबिक्स का विकास
ध्यान से समाधि वाली अवस्था के दौरान रास, रंग और नाद के एकीकृत चमत्कारी प्रभाव को स्वास्थ्य और खुशहाली पर देखे जाने के बाद मैंने परमात्मा से यह प्रश्न पूछा कि आज के समय में रास, रंग और नाद को व्यवहारिक रूप से प्रयोग में कैसे लाया जा सकता है ताकि हम स्वस्थ और खुश रह सकें।
आज के समय में रास का किया जाना व्यावहारिक नहीं है। रंग के लिए रत्नों की आवश्यकता होती है और रत्न आजकल काफी महंगे हैं। सुरीली ध्वनियों को उत्पादित किए जाने के लिए हमारे पास उस तरह के वाद्य यंत्र नहीं हैं। हम बीमार होने की स्थिति में नृत्य भी नहीं कर सकते हैं।
परमात्मा ने मुझे पुन: इसे विस्तार से समझाया कि रास का मुख्य हिस्सा मुद्रा (हस्त मुद्रा) होता है और मुद्रा विज्ञान अपने आप में ही एक व्यापक विज्ञान है। इस बात के साक्ष्य हमें वेदों में भी मिलते हैं कि मुद्रा के समान अन्य कोई औषधि नहीं है। मुद्राओं का अभ्यास बहुत ‘यादा प्रयास के बिना मरीजों और किसी भी मनुष्य द्वारा किया जा सकता है।
यौगिक अभ्यास वैकल्पिक चिकित्सा के रूप में रोग निवारक होते हैं और इसका अभ्यास बीमार व्यक्तियों द्वारा नहीं किया जा सकता है। लेकिन मुद्राओं का अभ्यास एक पूरक चिकित्सा के रूप में बीमार व्यक्तियों द्वारा भी किया जा सकता है। इसे करते समय हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि इसे नियत समय और एक नियत अवधि के लिए किए जाने की आवश्यकता है। दो मिनट या पां’ा मिनट के लिए इसे किए जाने से कुछ भी लाभ नहीं होगा। वांछित परिणाम की प्राप्ति के लिए इसे दस से पन्द्रह मिनट या उससे भी अधिक समय के लिए किया जाना चाहिए|
इस प्रकार महंगे जवाहरात वाले रंगों के उपयोग की मेरी गहन आशंका को दूर करते हुए उन्होंने मुझे इस बात का पूर्ण रूप से एहसास कराया कि अदृश्य दिव्य आरोग्यकारी रंगीन किरणों का स्व आरोग्य की पूरी प्रक्रिया में काफी महत्वपूर्ण योगदान है और इसमें कुछ भी खर्’ा करना नहीं पड़ता है।
आज आधुनिक विज्ञान इतना अधिक तरक्की किए जाने के बाद भी परमात्मा से आने वाले रंगों के बारे में बिल्कुल अनभिज्ञ है। परमात्मा से जो आत्मिक ऊर्जा रंगों के माध्यम से विभिन्न आवृत्तियों पर आती है, उस पर किसी ने अभी ध्यान ही नहीं दिया है।
आजकल हमारा ध्यान भौतिक साधनों से आने वाले विभिन्न रंगों पर केंद्रित है। हम परमात्मा सर्वो”ा डॉक्टर से विभिन्न आवृत्तियों पर आने वाली विभिन्न रंगों की आरोग्यकारी क्षमता के महत्व को नहीं समझ पाते हैं। इन रंगों में उपचार की जो क्षमता है वह दुनिया की किसी अन्य थेरेपी या उप’ाार प्रणाली में नहीं है। परमात्मा से आने वाली किरणों में लेजर से भी ‘यादा आरोग्यकारी क्षमता है, जो हमारे शरीर के अंगों को ठीक कर सकती है। उन्होंने उद्घाटित किया कि प्रत्येक मानव को अपने मन को परमात्मा से जोडक़र उनसे ऊर्जा प्राप्त करते हुए अपना उपचार करना चाहिए और हम सबको इस विलक्षण आरोग्यकारी विज्ञान के बारे में सोचना चाहिए|
उन्होंने ऐसा भी उद्घाटित किया कि कोई भी अन्य नाद ब्रह्मनाद से बढक़र नहीं है। हम ब्रह्मनाद से अपनी श्वसन दर को नियंत्रित कर सकते हैं। यह प्रति मिनट श्वसन दर कम करके हमारे जीवनकाल को बढ़ाता है। मानव की उम्र प्रति मिनट श्वसन दर पर निर्भर करती है। श्वसन की प्रक्रिया हमारे जीवन की अवधि को प्रभावित करती है। आज के समय में भी आप इसे विभिन्न उदाहरणों से समझ सकते हैं।
कछुआ एक मिनट में 5 बार श्वसन करता है और वह 150 से 200 साल तक जीता है। कुत्ता एक मिनट में 20 से ‘यादा बार श्वास लेता है और उसकी औसत आयु 12 साल के करीब होती है।
इस प्रकार परमात्मा ने हमें यह स्पष्ट किया कि रास, रंग और नाद को वर्तमान जीवनशैली में एकीकृत किया जा सकता है और इसे ही साइको न्यूरोबिक्स का नाम दिया गया है।
हमारे मन द्वारा परमात्मा की ओर से आने वाली रंगीन किरणों की भूमिका आरोग्यकारी प्रक्रिया में 80 प्रतिशत से अधिक होती है। इसे अपने मन के माध्यम से कोई भी महसूस कर सकता है। इसलिए सर्वो”ा डॉक्टर के साथ आरोग्य की यह पूरी प्रक्रिया पूरी तरह से मन के माध्यम से चिकित्सा का एक विज्ञान है और इसे इसी वजह से साइको न्यूरोबिक्स कहा जाता है।
साइको न्यूरोबिक्स अन्य आरोग्यकारी विज्ञानों से बेहतर ही नहीं, बल्कि सर्वश्रेष्ठ भी है। यह विश्व के सर्वश्रेष्ठ आरोग्यकारी विज्ञानों में अग्रणी है, क्योंकि इसका आविष्कार किसी मनुष्य ने नहीं बल्कि परमात्मा ने खुद सिखाते हुए किया है।
इस आरोग्यकारी विज्ञान का प्रत्यक्ष प्रमाण मैं खुद हूं। जब इस विज्ञान के उपयोग से मेरी तीन-तीन प्राणघातक बीमारियां जैसे कैंसर, डायबिटीज और लीवर का सिरोसिस ठीक हो सकती हैं तो आपकी छोटी-छोटी बीमारियां तो इससे अवश्य ठीक हो ही सकती है|
मैंने कई रोगियों पर इसका प्रयोग किया और उन सबने इस आरोग्यकारी प्रक्रिया में काफी बेहतर महसूस किया। इस प्रकार साइको न्यूरोबिक्स एक विज्ञान बन गया और इसके जन्मदाता के रूप में परमात्मा ने मुझे एक माध्यम बनाया और मैंने इस विज्ञान को अपने व्यावहारिक जीवन में काफी गहराई से अपनाया है और लोगों को भी इस विज्ञान को प्रयोग करने के लिए प्रेरित कर रहा हूं।
#आप सिसिग्फा सॉल्यूशंस के फाउंडर डॉक्टर बीके चंद्र शेखर तिवारी जी से cstiwari8208@gmail.com ईमेल पर संपर्क कर सकते हैं|