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Faridabad| ग्राम भूपानि स्थित, सतयुग दर्शन वसुन्धरा पर आजकल विशेष ही चहल-पहल है 1योंकि यहाँ परिसर में निर्मित ध्यान-कक्ष यानि समभाव-समदृष्टि के स्कूल को अब सामान्य जनता के दर्शनार्थ खोल दिया गया है। विद्यार्थियों के अनुसार प्रत्येक मानव को मानवता का संदेश देता यह पावन श्रद्धा स्थल वास्तव में ईश्वरीय कला का साक्षात्ा प्रमाण है व इसकी शोभा बेमिसाल है।
एक विद्यार्थी के पूछने पर कि इस अति ही सुन्दर ध्यान-कक्ष का निर्माण क्यों किया गया, ट्रस्ट के निष्काम सेवकों ने बताया कि आज के समय में हर इंसान के मन में, परिवारों में व कुल समाज ओर अखिल विश्व में असत्य-अधर्म का बोलबाला है व हर तरफ पाप और अराजकता का मनगढंत साम्राज्य फैला हुआ है। इसी कलुषित वातावरण के कारण, भारत माता भी अपने कोख से जन्मे कुपुत्रों यानि परम पिता परमेश्वर की शास्त्रविहित्ा आज्ञाओं के विपरीत मनमत पर चलने वाले इंसानों की हरकते देख कर ज़ारो-ज़ार रो रही है। उसकी ऐसी हालत को देखते हुए अब लगता है कि समय अब बहुत शीघ्र ही बदलने वाला है अर्थात्ा कलियुग जाने वाला है और सतयुग आने वाला है। अत: सतयुगी नैतिकता के अनुरूप स्वाभाविक परिवर्तन लाना अब आपेक्षित हो गया है। इसी आवश्यकता पूर्ति हेतु सतयुग दर्शन वसुन्धरा पर यह ध्यान-कक्ष, स्कूल खोला गया है और यहाँ किसी शरीर/मूर्ति/तस्वीर आदि को स्थापित करने के स्थान पर, श4द ब्रह्म विचारों यानि सत्य आत्मज्ञान को स्थापित कर, उनकी धारणा के प्रति सबको जाग्रत करने का प्रयास किया जा रहा है ताकि समपूर्ण मानव जाति सतयुगी आचार संहिता को धारण कर जीवन के तमाम संतापों से मुक्ति पा सके।
आगे बताया गया कि व्यक्तिगत स्तर पर वेद-शास्त्रों में विहित इन श4द ब्रह्म विचारों यानि सत्य ज्ञान को अपनाने पर ही इस धरा पर पुन: सत्य धर्म का यानि सतवस्तु का राज स्थापित हो सकता है और हर मन को अखंड शांति प्राप्त हो सकती है। इस अखंड शांति की प्राप्ति होने पर ही इंसान भौतिक ज्ञान से अधिक आध्यात्मिक ज्ञान को प्राथमिकता दे सकता है और जिस कार्य की सिद्धि हेतु उसे यह जीवन मिला है उसकी सिद्धि कर आत्मोद्धार कर सकता है। कहने का आशय यह है कि इन विचारों को अमल में लाने से ही इंसान इंसानियत में बना रह सकता है और सर्वहित के निमित्त परोपकार कमा सकता है।
सारत: यहाँ उपस्थित सभी बच्चों को बताया गया कि आप और कुछ नहीं अपितु सर्वशक्तिमान ईश्वर का अंश हो, इसलिए आत्मज्ञान प्राप्त कर, अपने अन्दर उन शक्तियों का विकास करो और ‘ईश्वर है अपना आप’ के विचार पर स्थिरता से खड़े हो जाओ। ऐसा ही हो इस हेतु उन्हें कहा गया कि अपने ख़्याल को श4द ब्रह्म यानि प्रणव मंत्र, मूल मंत्र आद् अक्षर में ध्यान स्थित कर लो ताकि आपका हृदय सदा एकरस प्रकाशित रहे और आप संसार में विचरते हुए भी परिपूर्ण चेतन अवस्था में सधे रह सको व अपनी विवेकशक्ति का सही ढंग से इस्तेमाल करते हुए अन्दरूनी व बैहरूनी वृत्ति में जो भी धारो वह केवल सत्य ही हो। इसी के साथ उन्हे यहाँ संतोष, धैर्य धारण कर, सत्यता से मानव धर्म अनुसार, निष्कामता से सर्वहित के निमित्त जीवन जीने की कला भी सिखाई गई ताकि वे किसी विध भी भ्रमित होकर जगतीय विषय-विकारों में न उलझे और निर्विकारता से जीवनयापन करते हुए कर्म फल से विमुक्त बने रह सकें।