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कतरा -कतरा ,लम्हा -लम्हा जी चुके पलों में
झांकने को जी चाहता है अब।
खट्टी -मिठ्ठी जो यादें सिमटी तेरे दामन में ऐ जिन्दगी
उन्हें फिर से जी लेने को जी चाहता है अब।
बदलते मौसम की तरह कई रंग बदले तूने
तेरे बसन्त ,तेरे सावन में भीगने को जी चाहता है अब।
बहुत से रिश्ते, बहुत से रिश्तेदार नवाज़े तूने मुझको
रिश्तों का अपनापन समेटने को जी चाहता है अब।
न जाने कितने ज़ज्बों को छुपा रक्खा है पहलू में अपने
छिटक कर सब बिखराने को जी चाहता है अब
खिसक कर गिर गए कुछ सुनहले पल जहाँ तहाँ
चुन चुनकर दामन में भर लूँ उनको जी चाहता है अब ।
कई पड़ाव ,कई रास्ते तय किए भटकते भटकते
उसी रहगुज़र पर ठहरने को जी चाहता है अब ।
रस्में,वादे सब निभा दिए लेकिन हसरतें अभी हैं बाकी कुछ
इन्हीं हसरतों को पूरा करने को जी चाहता है अब ।
जी चाहता है अब ।
साभार कवयित्री शारदा मित्तल——-