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फरीदाबाद। सतयुग दर्शन ट्रस्ट की ओर से सतयुग सभागार में 12 से 22 साल के बाल-युवाओं के लिए मानवता का प्रसंग -युवाओ के संगज् नामक कार्यक्रम का आयोजन किया। इस प्रतियोगिता के अंतर्गत देश के विभिन्न राज्यों से आए लगभग एक सौ एक बच्चों को मानवता व च्शब्द है गुरु, शरीर नहीं है इस विषय पर अपने विचार हिन्दी या अग्रेजी में ज़बानी व्यक्त करने का अवसर प्राप्त हुआ। सार में बच्चों ने मानवता के विषय में अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि च्हम ईश्वर की सर्वोत्कृष्ट कलाकृति मानव हैं। मानव होने के नाते मानवता ही एकमात्र हमारा अपना व मुख्य धर्म है।
कुदरत प्रदत्त यह धर्म नित्य है, अपने आप में परिपूर्ण है, निद्र्वन्द्व है, निर्विवाद है व सदाबहार है यानि परिस्थितियों के अनुसार कभी बदलता नहीं अपितु हर समयकाल में एकरस बना रहता है और समपूर्ण मानव जाति को समभाव-समदृष्टि की युक्ति अनुरूप, एक भाव-भावना-नज़रिया व स्वभाव अपना कर, आत्मियता के व्यवहार में ढ़ल, एकता में बने रहने का संदेश देता है। यही मानवता ही समस्त सद्गुणों का बीज है जो सदा ह्मदय में विद्यमान रहता है और शब्द ब्राहृ विचारों से सींचने पर मानवीय चरित्र के रूप में फलता-फूलता है। युक्तिसंगत की गई इस सिंचाई से ह्मदय की समुच्चय व्यवस्था का वातावरण विशुद्ध बना रहता है फलत: मानव की वृत्ति, स्मृति, बुद्धि व भाव-स्वभावों का ताना-बाना निर्मल बना रहता है। इसके अतिरिक्त एक बच्चे ने यह भी कहा कि आज हमारे लिए यह जानना आवश्यक है कि, शब्द ब्राहृ जो आध्यात्मिक विद्या का परिचायक है, उस को ग्रहण करने पर ही मानव के मन में आत्मियता युक्त मानवता जाग्रत होती है। अत: इंसानियत में आने के लिए, आध्यात्मिक विद्या को पढ़-समझ कर, अंतर्विद्यमान मानवता रूपी गुण का निपुणता से विकास करते हुए उसका प्रयोग करने की कला सीखनी आवश्यक है।