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Faridabad| सतयुग दर्शन ट्रस्ट का वार्षिक रामनवमी यज्ञ महोत्सव, आज भूपानी स्थित सतयुग दर्शन वसुंधरा पर प्रात: ८.०० बजे सतवस्तु के कुदरती ग्रन्थ व रामायण के अखंड पाठ के साथ आरंभ हुआ।
आरमिभक विधि के उपरांत सजनों को सत्संग के दौरान ट्रस्ट के मार्गदर्शक श्री सजन जी ने मोक्ष प्राप्ति हेतु विचार की महत्ता बताते हुए कहा कि:- हँसना ही जीवन है, रोना तो है जी मरना। यहाँ जीवन-मरण के विषय में स्पष्टीकरण देते हुए उन्होंने कहा कि जहाँ जीवन–जीवन शक्ति, प्राणशक्ति है यानि हमारे सजीव ओजयुक्त अस्तित्व व सर्वांगीण स्वस्थता का आधार है और परमात्मा की अद्भुत देन है वहीं मरना जीवन का अन्त है यानि घोर संकटमय व कष्टप्रद अचेतन अवस्था है व इसके परिणाम से मनुष्य के मन में संसार के प्रति आसक्ति का भाव पनपता है और वह जन्म-जन्मांतरों तक जन्म-मरण की पीड़ा भोगता रहता है।
आशय यह है कि जीवन मोक्ष की ओर ले जाता है व मृत्यु बन्धमान करती है। मोक्ष चौरासी के बंधन यानि आवागमन से मुक्ति, छुटकारा पाना है तथा बन्धन, संसार/कर्म व माया-पाश में फँस कर कारागार की पीड़ा भुगतना है। यह बताने के पश्चात् उन्होने सजनों से पूछा कि जीना चाहते हो या मरना? सभी ने उत्तर दिया कि हम जीवन की हर चिंता, फिक्र, कष्ट व बन्धन से आज़ादी यानि मुक्ति पा जीना चाहते हैं। इस पर श्री सजन जी ने कहा कि यदि मुक्ति चाहते हो तो स्वार्थ से परमार्थ होने का संकल्प लो यानि इसी जीवनकाल में निज धर्म पर स्थिर रहते हुए, सत्यता से अपने समस्त कर्तव्यों को कुशलता से संपादन करो व ए विध् निष्काम भाव से पुण्य कर्म करते हुए अपने सच्चे घर की ओर बढ़ो। यही नहीं इस शुभ संकल्प की सिद्धि हेतु च्च्विचार ईश्वर आप नूं मानज्ज् के सत्य को आत्मसात् करो और समभाव-समदृष्टि के सबक़ अनुसार सदा सजन भाव का वर्त-वर्ताव करते हुए, निरंतर संकल्प रहित अवस्था में स्थिर बने रहो। ऐसा सुनिश्चित कर ब्रह्म भाव में स्थित हो जाओ और अपना जीवन आबाद कर लो।
इस तरह जीवन में विचार को अपनाने की महत्ता स्पष्ट करते हुए उन्होंने सजनों को बताया कि विचार सवलड़ा यानि सरल व सुगम रास्ता है और अव विचार कवलड़ा अर्थात् उलझनों भरा रास्ता है। विचार मार्ग पर चलने वाले की हर तरफ से जीत ही जीत होती है और अविचार के मार्ग पर चलने वाले को हर तरफ से ठोकरें व हार ही प्राप्त होती है। अत: इस परिणाम को याद रखते हुए कदम-कदम पर विचार पकड़ो यानि ब्रह्म विचार को धारण कर, उस पर खड़े हो जाओ। इस तरह जीवन में हर कदम पर, चिंतन-मनन द्वारा, गंभीरता से भली-भांति, सोच-समझकर विवेकपूर्ण निर्णय लेने की आदत बना लो। ऐसा करने पर विचार से प्यार होने लगेगा यानि विचारसंगत हर कार्य को करने की क्रिया, हमारे मन को भाने लगेगी और हम सत्य-असत्य, भले-बुरे की पहचान कर केवल यथार्थ को अपनाकर, व्यवहार में लाएंगे जो नीति व न्यायसंगत होगा। तभी अविचार यानि कुसंग छूटेगा और हम तीनों लोकों, तीनों कालों में सर्वव्यापी, अपने नित्य सत्य स्वरूप अर्थात् सतवस्तु शंख, चक्र, गदा पद्मधारी का दिव्य दर्शन कर आनन्दित हो जाएंगे और जन्म की बाजी जीत लेंगे।
अंतत: श्री सजन जी ने सजनों से कहा कि यदि जगत विजयी होना चाहते हो तो वेद-शास्त्रों में वर्णित श4द ब्रह्म विचार धारण कर सदा विचारयुक्त बने रहो और निर्विकारी हो अ1लमंद नाम कहाओ। उन्होंने कहा कि ऐसा करना इसलिए भी आवश्यक है 1योंकि कलुकाल जा रहा है और सतवस्तु आ रही है। सतवस्तु में विचार, सतज़बान एक दृष्टि एकता और एक अवस्था होगी। न सिमरण, न भजन और न ही बन्दगी होगी। खुला प्रकाश होगा। सतवस्तु में कला से सब कुछ उपजेगा। इसीलिए हमारे लिए यही समय है अपना जीवन बनाने का और प्रभु से मेल खाने का। अत: वक्त की नजाकत को समझते हुए संकल्प का झुखना-रोना बंद करो ताकि मन फुरने की सृष्टि से आजाद हो शांत हो जाए और आप विचार, सत् ज़बान, एक दृष्टि, एकता और एक अवस्था में आकर अपना जीवन सफल बना लो।