-आध्यात्मिक रूची वाले लोगों को पासंद आ रहा माउंट आबू
-सुंदर वादियों से सजी है नक्की झील
यशवी गोयल
फरीदाबाद। यदि आप आध्यात्मिक दुनिया से जुड़े हुए हैं और नए साल के मौके पर कहीं घूमने का प्लान कर रहे हैं तो माउण्ट आबू, राजस्थान स्थित प्रजापिता ब्रह्माकुमारीज ईश्वरीय विश्व विद्यालय केंद्र (शांतिवन) बहुत ही अच्छा स्थान है। केंद्र पहुंचने के लिए गुरुग्राम और नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से अजमेर होकर जाने वाली रेल का आप इस्तेमाल कर सकते हैं। हालांकि इसके लिए आपको पहले से ही टिकट बुक करवानी होगी। रेल में 12 घंटे का सफर तय करने के बाद आबू स्टेशन के बाहर आपको ब्रह्माकुमारीज केंद्र की ओर से बस मिलेगी, जो आपको केंद्र तक पहुंचाएगी। केंद्र तक तो हर कोई पहुंच जाएगा लेकिन वहां की सुख-सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए टूरिस्ट को अपने घर के नजदीक केंद्र की शाखा की मुखिया से पत्र लिखवाकर ले जाना पड़ता है। जो कि केंद्र पहुंचकर मुख्य द्वार पर दिखाकर टूरिस्ट को कमरे की सुविधा दी जाती है। केंद्र की खूबसूरती और शांति देखकर कोई भी इंसान वहां घूमने से अपने को नहीं रोक पाएगा। केंद्र में सुबह के समय मुरली क्लास होती है, जिसे सुनकर व्यक्ति का मन शांति से भर जाता है। सुंदर पहाड़ों से अटे इस केंद्र परिसर को देखने के लिए कम से कम दो दिन का समय चाहिए। मुरली क्लास के बाद सुबह नाश्ते का प्रबंध होता है। शुद्ध, सात्विकता और परमात्मा की ध्यान में बना नाश्ता खाकर इंसान को परमात्म मिलन की अनुभूति होती है। केंद्र के बाहर से ही 200 रुपये में घूमने के लिए वाहन मिल जाता है। वाहन चालक टूरिस्ट को आबू पर्वत से कई किलोमीटर ऊंचाई पर स्थित पांडव भवन, नक्की झील, तिब्बत बाजार, देलवाड़ा मंदिर, पीस पार्क, ज्ञान सरोवर, अम्बाजी मंदिर व कई अन्य जगह ले जाता है।
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तपस्या भूमि है पांडव भवन
पांडव भवन ब्रह्माकुमारीज केंद्र की ही शाखा है। कहने को तो यह शाखा बहुत छोटी है लेकिन इस धरती पर केंद्र के जनक ब्रहमा बाबा ने तपस्या की थी। इस पांडव भवन पर ही बाबा ने आकर दुनिया को पवित्र और सात्विक बनाने का सपना देखा था। जो आज लाखों की संख्या में सेवाधारियों के रूप में सच हो रहा है। पांडव भवन की जमीन पर पांव रखते ही समझ में आ जाएगा कि बाबा के तप से यह धरती कितनी पवित्र और शांत हो चुकी है। भवन में पीस ऑफ टॉवर के समीप बैठकर कुछ देर ध्यान करने से पूरा दिन मन में शांति बनी रहती है। भवन में देखने लायक बाबा की कुटिया है। भवन के सामने ही पीस भवन बना हुआ है। पांडव भवन से कुछ ही दूरी पर तिब्बत मार्किट स्थित है जहां से तिब्बती सामान की खरीदारी की जा सकती है।
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सुंदर वादियों से सजी है नक्की झील
नक्की झील पांडव भवन से कुछ ही दूरी पर मौजूद है। झील माउंट आबू का एक सुंदर पर्यटन स्थल है। मीठे पानी की यह झील, जो राजस्थान की सबसे ऊंची झील है, सर्दियों में अकसर जम जाती है। कहा जाता है कि एक हिन्दू देवता ने अपने नाखूनों से खोदकर यह झील बनाई थी। इसीलिए इसे नक्की (नख या नाखून) नाम से जाना जाता है। झील से चारों ओर के पहाडिय़ों का दृश्य अत्यंत सुंदर दिखता है। इस झील में नौकायन का भी आनंद लिया जा सकता है। नक्की झील के दक्षिण-पश्चिम में स्थित सूर्यास्त बिंदू से डूबते हुए सूर्य के सौंदर्य को देखा जा सकता है। यहां से दूर तक फैले हरे भरे मैदानों के दृश्य आंखों को शांति पहुंचाते हैं। सूर्यास्त के समय आसमान के बदलते रंगों की छटा देखने सैकड़ों पर्यटक यहां आते हैं। प्राकृतिक सौंदर्य का नैसर्गिक आनंद देने वाली यह झील चारों ओर पर्वत शृंखलाओं से घिरी है। यहां के पहाड़ी टापू बड़े आकर्षक हैं। यहाँ कार्तिक पूर्णिमा को लोग स्नान कर धर्म लाभ उठाते हैं। झील में एक टापू को 70 अश्वशक्ति से चलित विभिन्न रंगों में जल फव्वारा लगाकर आकर्षक बनाया गया है जिसकी धाराएँ 80 फुट की ऊँचाई तक जाती हैं। झील के पास ही में बनी दुकानों से राजस्थानी शिल्प का सामान खरीदा जा सकता है। यहां संगमरमर पत्थर से बनी मूर्तियों और सूती कोटा साडिय़ां काफी लोकप्रिय हैं। यहां की दुकानों से चांदी के आभूषणों की खरीददारी भी की जा सकती है।
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धरती पर स्वर्ग का प्रतीक ज्ञान सरोवर
यदि धरती पर कहीं शांति और सुख होने की बात चलेगी तो उसमें ज्ञान सरावेर का नाम भी लिया जाएगा। ज्ञान सरोवर परिसर में जाते ही इंसान को सुख और शांति की अनुभूति होने लगती है। केंद्र परिसर में हर घंटे के बाद आध्यात्मिक गाना चलाया जाता है। जिसे सुनने वाले लोग परिसर में खड़े होकर परमात्मा की याद में खो जाते हैं। ज्ञान सरोवर बहुत ऊंचे एवं सुंदर पहाड़ों से घिरा हुआ है। ज्ञान सरोवर रंग-बिरंगे फूलों से अटा हुआ है। जिसकी सुंदरता मन को मोह लेती है। केंद्र में खाने पीने से लेकर चाय-दूध, नमकीन हर चीज का प्रबंध है।
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आस्था का केंद्र देलवाड़ा मंदिर
आबू पर्वत केवल ब्रह्माकुमारीज केंद्र के लिए ही नहीं बल्कि जैन धर्म से जुड़े श्रद्धालुओं के लिए भी खास है। देलवाडा मंदिर पांच मंदिरों का एक समूह है। ये राजस्थान के सिरोही जिले के माउंट आबू नगर में स्थित हैं। इन मंदिरों का निर्माण ग्यारहवीं और तेरहवीं शताब्दी के बीच हुआ था। यह शानदार मंदिर जैन धर्म के तीर्थंकरों को समर्पित हैं। मंदिरों के लगभग 48 स्तम्भों में नृत्यांगनाओं की आकृतियां बनी हुई हैं। देलवाड़ा के मंदिर और मूर्तियां मंदिर निर्माण कला का उत्तम उदाहरण हैं। मंदिर में प्रवेश से पहले महिलाओं को सिर ढंककर जाना होता है। मंदिर के बाहर चांदी के आभूषणों की खरीदारी की जा सकती है। कहा जाता है कि यह चांदी बहुत ही शुद्ध एवं चमकदार होती है।
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अंग्रजों को भाता था माउंट आबू पर्वत
जानकारी के अनुसार जब देश पर ब्रिटिश शासन की हुकूमत चलती थी। तब राजस्थान में रहने वाले अंग्रेजों को गर्मी के मौसम में आबू पर्वत खूब भाता था। समुद्र तल से 1220 मीटर की ऊंचाई पर स्थित आबू पर्वत (माउण्ट आबू) राजस्थान का एकमात्र पहाड़ी नगर है। यह स्थान राज्य के अन्य हिस्सों की तरह गर्म नहीं है। माउंट आबू पहले चौहान साम्राज्य का हिस्सा था। बाद में सिरोही के महाराजा ने माउंट आबू को राजपूताना मुख्यालय के लिए अंग्रेजों को पट्टे पर दे दिया। ब्रिटिश शासन के दौरान माउंट आबू मैदानी इलाकों की गर्मियों से बचने के लिए अंग्रेजों का पसंदीदा स्थान था।
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खान-पान
राजस्थान देशी खान-पान के लिए बहुत ही लोकप्रिय है। वैसे यदि आप केंद्र में जा रहे हैं तो आपको बाहर का खाना खाने की जरूरत नहीं पड़ेगी लेकिन खाने-पीने के शौकीन हैं तो आबू पर्वत रोड स्थित शांति वन के बाहर बाजार में गोलगप्पे और जलेबी बहुत ही स्वादिष्ट मिलती है। आमतौर पर गोलगप्पों में आलू व खट्टा पानी ड़ालकर ही खिलाया जाता है लेकिन राजस्थान में गोलगप्पों में डाले जाने वाले आलू में मटर को सूखी सब्जी की तरह पका लिया जाता है और उसमें प्याज ड़ालकर खट्टे व मीठे पानी के साथ दिया जाता है। यदि आप प्याज नहीं खाना चाहते तो रेहड़ी संचालक को मना भी कर सकते हैं।
तो आप कब आ रहे हैं इस धार्मिक नगरी में धार्मिक मस्ती के लिए।