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Faridabad| पश्चिमी दिल्ली से आए सज्जनों ने फऱीदाबाद, ग्राम भूपानी स्थित, एकता के प्रतीक, ध्यान-कक्ष यानि समभाव-समदृष्टि के स्कूल की भव्य शोभा का अवलोकन किया। सभी की जानकारी के लिए एकता के प्रतीक नाम से प्रसिद्ध इस भव्य दर्शनीय स्थल को वर्तमान समय में मानव जाति की एकता व शांति के प्रतीक के रूप में देखा जा रहा है।
उपस्थित सजनों को यहाँ बताया गया कि समभाव-समदृष्टि का यह स्कूल हमें मानव-धर्म अपनाकर, मैत्री-भाव अनुसार एकता, एक अवस्था के भाव में बने रहने का संदेश दे रहा है। इस संदेश को मनन कर जीवन में उतारने से ही हम एक दूसरे के दु:ख-सुख को समझकर आत्मभाव व आदर भाव से सब की आत्मा का सत्कार कर पाते हैं और परस्पर सजन-भाव का वर्त-वर्ताव करते हुए एक ऐसे नैतिक समाज का गठन करने में सफल हो जाते हैं जहाँ चारों ओर सुख-शांति व समृद्धि होती है।
सभी सदस्यों से कहा गया कि मानव होने के नाते निज-धर्म की सुरक्षा हमारा सर्वोपरि कर्त्तव्य है। इसी धर्म द्वारा ही हम अपना यथार्थ जान सकते हैं। अत: सावधान रहना है कि काम, क्रोध लोभ, मोह, अहंकार आदि विकार इस धर्म से हमें विचलित न कर सके। इसके स्थान पर हमें याद रखना है कि अपने धर्म पर टिके रहने वाला पराक्रमी ही सबसे बुद्धिमान और बलवान कहला सकता है। अत: जाग्रति में आना है और निज मानव धर्म को पहचानना है। इस संदर्भ में उन्हें कहा गया कि इसी अंतर्निहित मानव-धर्म से सभी को परिचित करा उसकी पहचान कराने हेतु ही इस समभाव-समदृष्टि के स्कूल का निर्माण हुआ है ताकि हर मानव अपने धर्म अनुरूप विचार-आचार व व्यवहार दर्शाकर समपूर्ण मानव जाति का स्वाभिमान बढ़ा सके।
Faridabad| पश्चिमी दिल्ली से आए सज्जनों ने फऱीदाबाद, ग्राम भूपानी स्थित, एकता के प्रतीक, ध्यान-कक्ष यानि समभाव-समदृष्टि के स्कूल की भव्य शोभा का अवलोकन किया। सभी की जानकारी के लिए एकता के प्रतीक नाम से प्रसिद्ध इस भव्य दर्शनीय स्थल को वर्तमान समय में मानव जाति की एकता व शांति के प्रतीक के रूप में देखा जा रहा है।
उपस्थित सजनों को यहाँ बताया गया कि समभाव-समदृष्टि का यह स्कूल हमें मानव-धर्म अपनाकर, मैत्री-भाव अनुसार एकता, एक अवस्था के भाव में बने रहने का संदेश दे रहा है। इस संदेश को मनन कर जीवन में उतारने से ही हम एक दूसरे के दु:ख-सुख को समझकर आत्मभाव व आदर भाव से सब की आत्मा का सत्कार कर पाते हैं और परस्पर सजन-भाव का वर्त-वर्ताव करते हुए एक ऐसे नैतिक समाज का गठन करने में सफल हो जाते हैं जहाँ चारों ओर सुख-शांति व समृद्धि होती है।
सभी सदस्यों से कहा गया कि मानव होने के नाते निज-धर्म की सुरक्षा हमारा सर्वोपरि कर्त्तव्य है। इसी धर्म द्वारा ही हम अपना यथार्थ जान सकते हैं। अत: सावधान रहना है कि काम, क्रोध लोभ, मोह, अहंकार आदि विकार इस धर्म से हमें विचलित न कर सके। इसके स्थान पर हमें याद रखना है कि अपने धर्म पर टिके रहने वाला पराक्रमी ही सबसे बुद्धिमान और बलवान कहला सकता है। अत: जाग्रति में आना है और निज मानव धर्म को पहचानना है। इस संदर्भ में उन्हें कहा गया कि इसी अंतर्निहित मानव-धर्म से सभी को परिचित करा उसकी पहचान कराने हेतु ही इस समभाव-समदृष्टि के स्कूल का निर्माण हुआ है ताकि हर मानव अपने धर्म अनुरूप विचार-आचार व व्यवहार दर्शाकर समपूर्ण मानव जाति का स्वाभिमान बढ़ा सके।