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Faridabad| नवरात्रों में मां दुर्गा की पूजा विशेष फलदायी होती है। नवरात्रि ही एक ऐसा पर्व है, जिसमें महाकाली, महालक्ष्मी और मां सरस्वती की साधना करके जीवन को सार्थक किया जा सकता है। आइये जानते हैं ज्योतिषाचार्य डॉ. पंकज त्रिपाठी से मां दुर्गा की कृपा प्राप्ति के लिए कुछ सरल उपाय|
– मां दुर्गा को तुलसी दल और दूर्वा चढ़ाना निषिद्ध है।
– अपने घर के पूजा स्थान में भगवती दुर्गा, भगवती लक्ष्मी और मां सरस्वती के चित्रों की स्थापना करके उनको फूलों से सजाकर पूजन करें।
– नौ दिनों तक माता का व्रत रखें। अगर शक्ति न हो तो पहले, चौथे और आठवें दिन का उपवास अवश्य करें। मां भगवती की कृपा जरूर प्राप्त होगी।
– नौ दिनों तक घर में मां दुर्गा के नाम की ज्योत अवश्य जलाएं।
– अधिक से अधिक नवार्ण मंत्र ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै’ का जाप अवश्य करें।
– इन दिनों में दुर्गा सप्तशती का पाठ अवश्य करें।
ज्योतिषाचार्य डॉ. पंकज त्रिपाठी ने बताया कि सांसारिक जीवन में लोगों के पास कई प्रकार के काम होते हैं ऐसे में जरूरी नहीं कि आपके पास हर दिन इतना समय हो कि आप पूरा सप्तशती का पाठ कर सकें। इस समस्या का समाधान दुर्गा सप्तशती के अंत में दिया गया है जो सिद्घ कुंजिकास्तोत्र के नाम से जाना जाता है।
-पूजन में हमेशा लाल रंग के आसन का उपयोग करना उत्तम होता है। आसन लाल रंग का और -ऊनी होना चाहिए।
– लाल रंग का आसन न होने पर कंबल का आसन इतनी मात्रा में बिछाकर उस पर लाल रंग का दूसरा कपड़ा डालकर उस पर बैठकर पूजन करना चाहिए।
– पूजा पूरी होने के पश्चात आसन को प्रणाम करके लपेटकर सुरक्षित जगह पर रख दीजिए।
– पूजा के समय लाल वस्त्र पहनना शुभ होता है। लाल रंग का तिलक भी जरूर लगाएं। लाल कपड़ों से आपको एक विशेष ऊर्जा की प्राप्ति होती है।
– मां को प्रात: काल के समय शहद मिला दूध अर्पित करें। पूजन के पास इसे ग्रहण करने से आत्मा व शरीर को बल प्राप्ति होती है। यह एक उत्तम उपाय है।
– आखिरी दिन घर में रखीं पुस्तकें, वाद्य यंत्रों, कलम आदि की पूजा अवश्य करें।
– अष्टमी व नवमी के दिन कन्या पूजन करें।
कुंजिकास्तोत्र में भगवान शिव ने पार्वती को बताया है कि जो व्यक्ति संपूर्ण दुर्गा सप्तशती का पाठ नहीं कर सकता है वह केवल सिद्घ कुंजिकास्तोत्र का पाठ कर ले। इसके पाठ मात्र से कवच, कीलक, अर्गलास्तोत्र सहित संपूर्ण दुर्गासप्तशती के पाठ का फल मिल जाता है। कुंजिका स्तोत्र सिद्घ मंत्रों द्वारा निर्मित है जिसके हर शब्द प्रवावशाली हैं।
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ परम कल्याणकारी है। इस स्तोत्र का पाठ मनुष्य के जीवन में आ रही समस्या और विघ्नों को दूर करने वाला है। मां दुर्गा के इस पाठ का जो मनुष्य विषम परिस्थितियों में वाचन करता है उसके समस्त कष्टों का अंत होता है। प्रस्तुत है श्रीरुद्रयामल के गौरीतंत्र में वर्णित सिद्ध कुंजिका स्तोत्र-
शिव उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजाप: भवेत्।।1।।
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्।।2।।
कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्।।3।।
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
पाठमात्रेण संसिद्ध् येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।।4।।
अथ मंत्र :-
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं स:
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।”
।।इति मंत्र:।।
नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नम: कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिन।।1।।
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिन।।2।।
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका।।3।।
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी।।4।।
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिण।।5।।
धां धीं धू धूर्जटे: पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देविशां शीं शूं मे शुभं कुरु।।6।।
हुं हु हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः।।7।।
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्�
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