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Faridabad| ध्यान कक्ष में उपस्थित इन सजनों व बच्चों को आज समझाया गया कि जानो चमत्कार एक है और एक ही विशेष है व एक ही हर अन्दर प्रवेश है। अत: इस तथ्य के दृष्टिगत सजनों जनचर-बनचर, जड़-चेतन में एक प्रकाश समझो और समदृष्टि हो जाओ। कहने का आशय यह है कि समभाव-समदृष्टि की युक्ति अनुसार सबको एक नज़र से देखो। सब में राम रूप देखो और सबके साथ एक जैसा वर्ताव करो। यह सबक़ सबसे पहले घर के कार्य व्यवहार में शुरू करो और फिर इसे अपनी दैनिक दिनचर्या व स्वाभाविक प्रकृति का अंग बना लो। इस तरह जात-पात, अमीरी-गरीबी, वड-छोट, अपने-पराए के भेदभाव से उबर, चराचर जगत को समभाव अनुरूप एक नज़रिए से देखते हुए समदृष्टि हो जाओ। आशय यह है कि:-
समभाव देखो सजनों, जनचर बनचर, समभाव देखो जगत जहान।
ओथे जात पात न अमीरी गरीबी, एहो दृष्टि सजनों राहवे महान।
इस संदर्भ में उन्हें समझाया गया कि समभाव-समदृष्टि को धारण करने हेतु दिल को ईर्ष्या-द्वेष और आपस की फूट (अनबन) से सदा अलग रखो क्योंकि आध्यात्मिक (आत्मा-परमात्मा संबंधी) और व्यावहारिक (बरताव संबंधी) शिक्षा प्राप्त करने के लिए हृदय की शुद्धता अति उत्तम साधन है। इस हृदय को दर्पण की तुलना देते हैं। यदि दर्पण निर्मल हो तो उसमें जो घटता है वही नज़र आता है पर यदि उस पर थोड़ा सा भी दाग हो तो साफ़ किए बिना नज़र नहीं आता। ऐसा ही हाल हमारे दिल का भी है। यह दिल ही है, जिसमें जो विचार या इच्छा निश्चित की जाये सो ही पक्की हो जाती है। चाहे वह अच्छा हो या बुरा इसे जिधर लगाओ वहीं लग जाता है। इसलिए आयु की घड़ियों को मुश्किल जान इसे शुभ कर्मों में लगाओ तथा बुरी बातों से सदा बच कर रहो।
अंत में कहा गया कि याद रखो हम इन्सान हैं, हमें इन्सानी दिखानी है। अतैव इन्सानियत में आने हेतु मनमत त्याग कर, विचार जो ईश्वर के मुख की वाणी है यानि आत्मा की आवाज है, गुरुमत है तथा कुदरती आई हुई है उसे अपनाओ व व्यवहार में लाओ। इस तरह जो भी काम करो या बात करो, भली-भांति सोच-समझ कर, उचित-अनुचित का विचार कर, नीतिसम्मत करो और एक दृष्टि, एक दर्शन पर खड़े हो जाओ। यह है समभाव-समदृष्टि की युक्ति अनुसार कदम-कदम पर अपने आप को पकड़ते हुए, जन्म की बाज़ी जीत जाना। जानो जीवन के इसी प्रयोजन की सिद्धि के लिए यह समभाव-समदृष्टि का स्कूल खोला गया है।