नगर-निगम के निलंबित सीनियर टाऊन प्लानर के खिलाफ होगा केस दर्ज

नगर-निगम के निलंबित सीनियर टाऊन प्लानर के खिलाफ होगा केस दर्ज
nagar nigam faridabad

Todaybhaskar.com
फरीदाबाद। नगर निगम के निलंबित सीनियर टाऊन प्लानर सहित तीन लोगों के खिलाफ जिला अदालत ने पुलिस को मुकदमा दर्ज करने के निर्देश दिए हैं। इस मामले में शिकायतकर्ता वरुण श्योकंद की तरफ से अधिवक्ता नीरज बालियान व आयुष गोयल थे, जिन्होंने शिकायतकर्ता का पक्ष पूरे जोरदार तरीके से जज साहिबान के सामने रखा।  मामला ओल्ड फरीदाबाद नगर निगम द्वारा हितेंद्र नामक एक व्यक्ति को बसेलवा डेयरी स्कीम नंबर 2 में गैरकानूनी तरीके से एक प्लाट के आवंटन से जुड़ा हुआ है। आरोप है कि एसटीपी रहे सतीश पाराशर ने वर्ष 2012-13 में ज्वाइंट कमिश्नर के पद पर रहते हुए इस प्लाट को गलत तरीके से आवंटन कर दिया। इस मामले में अदालत ने आरटीआई एक्टिविस्ट वरूण श्योकंद द्वारा अदालत में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सतीश पाराशर सहित नगर निगम की प्लानिंग ब्रांच में कायर्रत सुनीता डागर व हितेंद्र के नाम मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिए हैं।
वरूण श्योकंद ने अदालत जाने से पहले नगर निगम आयुक्त, पुलिस आयुक्त, राज्य के मुख्य सचिव, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव सहित सीएम विंडो पर अनेक शिकायतें दर्ज करवाई। वरूण के अनुसार सतीश पाराशर ने अपने पद व रूतबे का नाजायज लाभ उठाते हुए सभी शिकायतों को रद्दी की टोकरी में फिकवा दिया। इसी मामले को लेकर 6 जून 2017 को पार्षद नरेश नबंरदार ने नगर निगम सदन की बैठक में भी इस फर्जी तरीके से किए गए प्लाट आवंटन का मुद्दा जोरदार तरीके से उठाया था। पार्षद की मांग पर सदन ने इस मामले की ज्वाइंट कमिश्नर फरीदाबाद से जांच करवाने के आदेश दिए। लेकिन यह जांच होने नहीं दी गई। इसी मामले में 26-5-2016 को तत्कालीन निगम आयुक्त आदित्य दहिया ने विजिलेंस जांच के आदेश दिए थे। इस जांच का भी कोई परिणाम सामने नहीं आया। इसके बाद वरूण श्योकंद ने  20 मई 2017 को सीएम विंडो पर अपनी शिकायत दर्ज करवाई। वरूण के मुताबिक सीएम विंडो की जांच को भी उक्त अधिकारी ने मैनेज कर लिया।
शिकायतों पर कोई परिणाम सामने ना आते देखकर अंतत: वरूण श्योकंद ने 20 अप्रैल 2018 को अदालत में इस्तगासा दायर कर हितेंद्र, नगर निगम कर्मचारी सुनीता डागर एवं निलंबित एसटीपी सतीश पाराशर के खिलाफ धारा 420, 406, 467, 468, 471, 120 बी, के अंतर्गत शिकायत दी। न्यायाधीश हिमानी गिल  ने वरूण  की शिकायत पर सुनवाई करते हुए थाना ओल्ड फरीदाबाद को उपरोक्त आरोपियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिए हैं।
वरूण ने अपनी शिकायत में अदालत को बताया है कि 6 फरवरी 2013 को जब सतीश पाराशर के पास ओल्ड फरीदाबाद नगर निगम के ज्वाइंट कमिश्नर का चार्ज था, तब उन्होंने गांव खेडीकला निवासी हितेंद्र को बसेलवा डेयरी प्रोजेक्ट नंबर 2 नहरपार में प्लाट नंबर 113 ( 250 गज का प्लाट ) आवंटित कर दिया। वरूण के अनुसार डेयरी प्रोजेक्ट के अंतर्गत प्लाट आवंटन को लेकर राज्य सरकार ने एक कमेटी गठित की थी। इस कमेटी ने शहर में डेयरी चलाने वालों का एक सर्वे किया। इस सर्वे में जिन लोगों को शामिल किया गया, उन्हें वहां प्लाट दिए गए। लेकिन हितेंद्र का नाम इस सर्वे लिस्ट में कहीं भी शामिल नहीं था। इसके बावजूद उसे मात्र  1200 रुपए गज के हिसाब से प्लाट दे दिया गया।  6 फरवरी को हितेंद्र को प्लाट का आवंटन किया गया और मात्र एक सप्ताह बाद ही हितेंद्र ने यह प्लाट नगर निगम की कर्मचारी सुनीता डागर को 13 फरवरी 2013 को ट्रांसर्फर कर दिया। इसका सीधा सा मतलब है कि सुनीता डागर को सतीश पाराशर डेयरी परियोजना में प्लाट देना चाहते थे, लेकिन वह प्लाट उसे हितेंद्र के माध्यम से दे दिया गया। 600 रुपए गज के हिसाब से दिए गए इस प्लाट की बाजार कीमत उस समय 40 से 50 हजार रुपए गज थी।
हैरत की बात तो यह है कि एक जीपीए के माध्यम से हितेंद्र ने यह प्लाट सुनीता डागर के नाम कर दिया। यह जीपीए देवरी जिला सागर मध्यप्रदेश से करवाई गई। पंरतु आरटीआई के अंतर्गत जब जानकारी ली गई तो देवरी जिला सागर प्रशासन  ने बताया कि यह जीपीए उनके यहां पंजीकृत नहीं हुई है। इससे भी बड़ी बात तो यह है कि हितेंद्र ने सुनीता डागर को उक्त प्लाट फरवरी 2013 में ट्रांसर्फर किया था ,लेकिन सुनीता डागर के नाम  प्लाट आवंटन की जीपीए अप्रैल 2008 में ही कर दी गई थी। यानि कि प्लाट का आवंटन होने से कई साल पहले ही यह जीपीए तैयार हो गई थी।
प्लाट ट्रांसर्फर होते ही सुनीता डागर को एक  साल के भीतर मई 2014 में पोजीशन दे दी गई  और इसके बाद नक्शा व कंपलीशन प्रमाण पत्र भी उसे थमा दिया गया। आश्चर्य की बात तो यह है कि इतने साल बाद भी डेयरी परियोजना में कुछ ही लोगों को पोजीशन दी गई है। बाकि लोग आज भी धक्के खा रहे हैं।
बताया गया है कि  नगर निगम के संबंधित अधिकारियों द्वारा हितेंद्र को प्लाट आवंटन से पहले आयुक्त से अनुमति ली जानी चाहिए थी, लेकिन इस केस में कोई अनुमति नहीं ली गई है। प्लाट ट्रांसर्फर के लिए आयुक्त की अनुमति लिया जाना अनिवार्य है। ऐसा एलाटमेंट लेटर की शर्त संख्या -7 में दर्ज है। लेकिन इस केस में ऐसा नहीं किया गया है। इसके अलावा हितेंद्र व सुनीता डागर की एलाटमेंट लैटर व जीपीए लैटर में किए गए हस्ताक्षर भी अलग अलग है। इससे साफ  प्रतीत होता है कि इस मामले में बड़े पैमाने पर फर्जीवाडा किया गया है। अपनी इस शिकायत को लेकर वरूण श्योकंद ने अदालत का सहारा लिया। उनकी शिकायत पर अदालत ने फिलहाल पुलिस को मुकदमा दर्ज कर जांच के आदेश दिए हैं।

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