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संकल्प ही हमारे पुरूषार्थ का मूल आधार है। नकारात्मक संकल्पों से बुद्वि अस्वच्छ बन जाती है और हमारी एकाग्रता भी नही होती। व्यर्थ संकल्पों के कारण शक्तियां और सद्गुण भी हमारा साथ नही देते। मन भी भारी होता है इसलिए व्यर्थ संकल्पों से मुक्त बनने की बहुत आवशयकता है। व्यर्थ विचारों के कारण आत्म-बल व मनोबल कमजोर बन अनेक मानसिक और शारीरिक बीमारियां होने की संभावना बढ जाती है।
स्थिर पानी में ही आकाश के चंद्रमा को सपष्ट देश सकते है, वैसे ही स्थिर मन में ही हम आत्म-दर्शन कर सकते है। आईने के ऊपर धूल होगी तो प्रतिमा रूपष्ट दिखाई नही देगी, ऐसे ही व्यर्थ संकल्पों की धूल बुद्वि रूपी आईने को ढक लेती है। देखा जाता है कि परिस्थतियों के नकारात्मक संकलप मन-बुद्वि को एकाग्र नही होने देते। आत्म-चिंतन व परमात्मा चिंतन करने नही देते। मन में चलने वाले व्यर्र्थ-संकल्पों से भावना, दृष्टिकोण, बृति और व्यव्हार भी नकारात्मक बन जाते है। जिसके प्रति मन में व्यर्थ चिवार चलते है, उसके प्रति घृणा, नफरत, वैर, विरोध, क्रोध और बदला लेने की भावना जागृत होती है जिससे आपसी स्वभाव-संस्कारों में टकराव, निखराव पैदा होता है।
मन-बुद्वि को स्वच्छ करने का साधन है श्रेष्ठ-संकल्प। हम सभी घर की साफ-सफार्ई रोज करते है, नही तो धूल जमना शुरू हो जाता है। एसी प्रकार हर कदम हम श्रेष्ठ-संकल्पों से मन में एकत्रित हुई धूल को साफ करें तभी मन रूपी बर्तन शुद्व हो सकता है। इसलिए आवश्यक है कि रोज शुद्व संकलपों का भोजन करें नहीं तो व्यर्थ व नकारात्मक संकल्पों रूपी अशुद्व भोजन मन को बीमार कर देगा।
व्यर्थ संकल्पों से कैसे बचें।
1. रोज सुबह उठते ही स्व-चिंतन कर मन को शक्तिशाली संकल्पों से भर दें।
2. परचिंतन न करें और दुसरों के लिए शुभ-भावना व शुभ-कामना रखें।
3. सहनशील बने क्योंकि सहनशीलता का गुण बड़ी से बड़ी परिस्थतियों को पार करने में मदद करता है।
4. यह संसार एक नाटकशाला है। इस नाटकशाला में सभी का अपना-अपना पार्ट अथवा रोल है। किसी को अच्छा रोल मिला है और किसी को बुरा। यह बात ध्यान में रख साक्षी भाव धारण करें।
5. नियमित योगाभ्यास करें, इसमें व्यर्थ संकल्पों पर ब्रेक लगाने की कंट्रोलिंग पावर प्राप्त होती है।
6. परिस्थतियों को इम्तिहान समझें। वयर्थ संकल्पों में फंसने के बजाए यह समझें कि मुझे इन बातों को पार कर विजयी बनना है और पेपर मे ंपास होकर दिखाना है। याद रखें कि आपमें परिस्थिति पर विजय प्राप्त करने की कही अधिक शक्ति है।
7. कम बोलें अथवा अत्यधिक वाचा में न आए।
8. रोज आत्म निरीक्षण करें इसमें स्वयं को जांचने व स्वयं को परिवर्तन करने में सहयोग मिलता है।
9.मन को बिजी रखें।
10. जीवन को और स्वयं के व्यवहार को सरल बनाएं। सरलता के गुण से अनेक बाते स्वत: ही सहज हो जाती है। और हम व्यर्थ के बहव से स्वंय को बचा सकते है।
साभार-ब्रह्माकुमारी पूनम वर्मा