विश्व गौरैया दिवस पर स्पेशल
Yashvi Goyal
Faridabad| एक वक्त था जब सुबह की पहली किरण के साथ ही कानो में गौरैया की आवाज सुनाई देने लगती थी लेकिन छोटे आंगन और बदलती दुनिया में यह आवाज़ सुनाई देनी ही कम हो गई है| वक्त बदला और तेज रफ्तार देश-दुनिया में गौरैया की आबादी कम होती चली गई। एक अनुमान के मुताबिक, शहरों में तो इनकी तादाद महज 20 फीसदी रह गई है। गांवों में हालात बहुत ज्यादा जुदा नहीं हैं| फिर भी कुछ उपाय कर हम इन गौरैया को बचा सकते हैं| यहां जानते हैं कि आखिर किन वजहों से ये हमसे दूर हुईं….
सीलिंग फैन से नुकसान
– अकसर घरों में गौरैया उड़ती रहतीं थीं। फिर छतों पर सीलिंग फैन लटकने लगे। हमारी ये सुविधा इस खूबसूरत पक्षी के लिए जानलेवा साबित होने लगी। घरों में बेफिक्री से परवाज भरने वाली गौरैया सीलिंग फैन से टकरा-टकरा कर जान देने लगीं।
आंगन हुए छोटे
– गांवों में तो आज भी आंगन हैं लेकिन, शहरों में ये खत्म होने लगे हैं। आज शहरों में ज्यादातर लोग एकल परिवार में रहना पसंद करते हैं| जिस कारण से घरों में आँगन ख़त्म होने लगे| पहले दाना चुगने ये आंगन में उतरती थीं। छोटे बर्तनों में इनके लिए दाना और पानी रखा जाता था। अब जिंदगी में भागमभाग है। इनके लिए शायद बहुत कम लोगों के पास वक्त बचा है। गांव या खुली जगहों पर तो ये जी लेती हैं। शहरों में नहीं।
मोबाइल टॉवर भी जिम्मेदार
– एक रिसर्च के मुताबिक, जैसे-जैसे मोबाइल टॉवर की तादाद बढ़ती गई, वैसे-वैसे गौरैया कम होती गईं। दरअसल, ऐसा दावा है कि इन टॉवर्स से जो तरंगें निकलती हैं, वो गौरैया की प्रजनन क्षमता को कम करती है।
क्या करें हम?
– आप और हम गौरैयों की चहचहाट फिर पा सकते हैं। हमारी सुबह फिर खूबसूरत हो सकती है। सवाल उठता है कि कैसे? चलिए हम आपको बताते हैं।
– खिड़कियों या घरों के कोनों मे दाना और पानी से भरी कटोरियाों लटकाएं। छत पर कुछ बोंसाई गमले लगा सकते हैं। इनको दाना और पानी मिलेगा तो ये जरूर आएंगी।
– चाहें तो कुछ घोंसले भी बना सकते हैं। आप इनको रखकर फिर दूर हो जाएं। गौरैया इन्हें अपने लिए इस्तेमाल कर लेंगी।