Todaybhaskar.com
faridabad| कविता मेरी नई है मगर भाव वही पुराने हैं।
सदियों से जो अमर हैं,वो रिश्ते गुनगुनाने हैं ।
माँ वही है ,चंद श्रद्धा सुमन भेंट चढ़ाने हैं ।
प्यार और भावनाएँ न बदल सकी चाहे बदले ज़माने हैं ।
आज भी औलाद के रोने परआँखे माँ की भर आती हैं ।
हँसने में उनके , वो भी अपनी सारी खुशियाँ पाती है ।
माँ सदियों पहले ऐसी होती थी,माँ आज भी ऐसी ही है ।
हमें भूख लगने पर कैसे, अन्नपूर्णा बन जाती है ।
प्यास लगने पर जैसे, नदिया सी प्यास बुझाती है ।
साधन चाहे कम हों कितने,लक्ष्मी बन लुट जाती है
उसके आँचल की छाया, आज भी बरगद सी है ।
कल भी जन्नत थी वो बाहें, आज भी जन्नत सी है ।
कल वो पढ़ी लिखी न थी , आज वो विद्वान है ।
कल वो लाचार व निर्भर थी, आज खुद ज़मी, खुद आसमां है ।
औरत कितनी बदल गई है , पर माँ हर परिवर्तन से अन्जान है ।
मन को जो दे सकेे सकून,माँ शीतल चाँदनी बनी रही ।
हृदय को हर्षित कर दे ,माँ वो रागिनी बनी रही ।
हर गल्ति को भुला सके जो क्षमादायिनी बनी रही ।
हमारे लिए वो जियी सदा ही ,हमारे लिए ही मरती रही ।
ये भाव कभी न बदल सके ,कितने आए ,चले गए ।
माँ वैसी ही बनी रही ,युग आए युग बदल गये।
वो पहले भी महान थी , वो आज भी महान है ।
उसकी चाहत तो देखो सदियों से कितनी कम है,
औलाद को न हो कोई गम ,उसको केवल ये ग़म है ।
-साभार- शारदा मित्तल कवियत्री