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faridabad। सतयुग दर्शन विद्यालय में हिन्दी दिवस मनाया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में सीपीएस सीमा त्रिखा व विशेष अतिथि के रूप में हरियाणा ग्रन्थ अकादमी के डिप्टी चेयरमैन प्रोफेसर वीरेंद्र सिंह चौहान मौजूद थे। विद्यालय के छात्रों ने स्वागत-नृत्य प्रस्तुत किया तदुपरांत हिन्दी भाषा के महत्व को प्रतिपादित करते हुए अपने विचार प्रस्तुत किए व कविता-पाठ किए।
समारोह में प्रोफेसर वीरेंद्र चौहान ने कहा कि हिंदी के मान-सम्मान की बहाली तब तक संभव नहीं जब तक हिंदी भाषी लोगों के मनों में हिंदी को लेकर उत्पन्न हुई हीनता की ग्रन्थियों को उखाड़ कर नहीं फेंक दिया जाता। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत का भाल ऊंचा करने का जो अभियान चला है उसमें हिंदी के दिन भी फिरने लगे हैं। योग की ही भांति हिंदी को भी वैश्विक पटल पर जल्द ही उसका देय स्थान मिलेगा। सीमा त्रिखा ने सतयुग दर्शन ट्रस्ट द्वारा किए जा रहे कार्यों की प्रशंसा करते हुए कहा कि वह सौभाग्यशाली हैं कि उन्हें विद्या ग्रहण करने व अपना चरित्र-निर्माण करने का अवसर ऐसे आध्यात्मिक व प्राकृतिक वातावरण में मिला। इस मौके पर सजनजी ने कहा कि मानव के भौतिक विकास के साथ-साथ चारित्रिक विकास पर भी बल आवश्यक रूप से दिया जाना चाहिए। इसके लिए बचपन से ही बच्चों में माता-पिता व शिक्षकों द्वारा इस प्रकार के संस्कार भरने का भरसक प्रयत्न करना चाहिए कि बच्चा सदैव मानवता में बना रहे और मानवता के अनुसार जीवन जीते हुए समभाव अपनाकर एक सुखी व समृद्ध जीवन जीए और संसार में समदृष्टि हो जाए।
समारोह में प्रोफेसर वीरेंद्र चौहान ने कहा कि हिंदी के मान-सम्मान की बहाली तब तक संभव नहीं जब तक हिंदी भाषी लोगों के मनों में हिंदी को लेकर उत्पन्न हुई हीनता की ग्रन्थियों को उखाड़ कर नहीं फेंक दिया जाता। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत का भाल ऊंचा करने का जो अभियान चला है उसमें हिंदी के दिन भी फिरने लगे हैं। योग की ही भांति हिंदी को भी वैश्विक पटल पर जल्द ही उसका देय स्थान मिलेगा। सीमा त्रिखा ने सतयुग दर्शन ट्रस्ट द्वारा किए जा रहे कार्यों की प्रशंसा करते हुए कहा कि वह सौभाग्यशाली हैं कि उन्हें विद्या ग्रहण करने व अपना चरित्र-निर्माण करने का अवसर ऐसे आध्यात्मिक व प्राकृतिक वातावरण में मिला। इस मौके पर सजनजी ने कहा कि मानव के भौतिक विकास के साथ-साथ चारित्रिक विकास पर भी बल आवश्यक रूप से दिया जाना चाहिए। इसके लिए बचपन से ही बच्चों में माता-पिता व शिक्षकों द्वारा इस प्रकार के संस्कार भरने का भरसक प्रयत्न करना चाहिए कि बच्चा सदैव मानवता में बना रहे और मानवता के अनुसार जीवन जीते हुए समभाव अपनाकर एक सुखी व समृद्ध जीवन जीए और संसार में समदृष्टि हो जाए।