वार्षिक रामनवमी उत्सव का अंतिम दिवस

वार्षिक रामनवमी उत्सव का अंतिम दिवस
satyug darshan faridabad
रामनवमी उत्सव लोगों को दान देते हुए नीलम गांधी

todaybhaskar.com
faridabad| आज उपस्थित सजनों को एक ज्ञानवान व्यक्ति बनने हेतु प्रेरित करते हुए सजन जी ने कहा कि किसी विषय या बल की तथ्यपूर्ण सामान्य या विशेष जानकारी को ज्ञान कहते हैं जैसे चारों वेदों का ज्ञान यानि सत्य की जानकारी। ज्ञान पदार्थ को ग्रहण करने वाली मन की वृत्ति यानि जानने, समझने आदि की प्राकृतिक शक्ति है। ज्ञान “मैं ब्राहृ हूँ” के भाव से की गई उपासना है जिसके अर्थ के आकार में परिणत बुद्धिवृत्ति के चेतन में प्रतिबि बन से होने वाला प्रकाश रूप बोध है। ज्ञान प्राप्त करना आत्मसाक्षात्कार करने के लिए तपस्या है।
उन्होंने कहा कि ज्ञान प्राप्ति प्रयत्न द्वारा होती है और ज्ञान का साधन इंद्रियाँ हैं। बुद्धि को ज्ञान अनुभूति और स्मृति से प्राप्त होता है। इस संदर्भ में बाह्र वस्तुओं के सुखात्मक और दु:खात्मक प्रभावों की संवेदना को अनुभूति कहते हैं। पुस्तकों की अपेक्षा अनुभव अधिक उपयोगी माना जाता है क्योंकि पुस्तकीय ज्ञान वाला ज्ञानी भी अनुभव के अभाव में अक्सर मूर्खों जैसा आचरण या व्यवहार करता है। इस प्रकार अधिकतर मनुष्य अपने प्राप्त ज्ञान के अभिमान से उद्दंड हो जाते हैं।
श्री सजन जी ने आगे कहा कि ज्ञात विषय के ज्ञान को स्मृति कहते हैं जो संस्कारजन्य होता है। यह एक जटिल मानसिक प्रक्रिया है जिसमें सीखना, धारण करना तथा पुन: स्मरण स िमलित होता है यानि यह घटनाओं और अनुभवों को याद रखने की क्षमता है। वस्तु की अनुपस्थिति में उससे संबंधित अनुभूति की मानसिक चित्रों के रूप में पुर्न जाग्रति ही स्मृति कहलाती है।
उन्होंने कहा कि स्मरण शक्ति का लोप होना एक शारीरिक रोग यानि दोष माना जाता है। यह स्मृति विकार मनुष्य में ऐसा स्मृति विभ्रम पैदा कर देता है जिसमें आवश्यकता के समय प्राप्त ज्ञान सत्यता से याद नहीं आता। फलत: आत्मविकाास टूटता है और वह कुछ भी न्यायसंगत करने में अपने आप को कमज़ोर पाता है यानि संकोच करता है।
इस प्रकार फिर मानव कुछ भी सत्यनिष्ठा से नहीं कर पाता और केवल औरों पर प्रभाव जमाने के लिए अनेक प्रकार की अज्ञानमय बातें करते हुए व्यंग्य कसता है।
इस संदर्भ में उन्होंने स्पष्ट किया कि परमात्मा ज्ञान से पूर्ण है, इसलिए निज ब्राहृ स्वरूप न तो कर्म द्वारा और न ही ज्ञान-कर्म के मिश्रण से जाना जा सकता है। उसको जानने के लिए तो अंतर्दृष्टि द्वारा प्राप्त ज्ञान ही केवल एकमात्र साधन है। इस अध्यात्मिक ज्ञान को प्राप्त कर आत्मदर्शन करने के तत्पर तीन साधन हैं यथा श्रुति यानि वाक्यों का श्रवण, मनन यानि सुने हुए वाक्यों पर बार-बार विचार और प्रश्नोत्तर आदि द्वारा तत्व का निश्चय करना और निदिध्यासन यानि बार-बार ध्यान में लाना या स्मरण करना। आगे उन्होंने स्पष्ट किया कि ब्राहृ रूपी अग्नि में आत्मरूपी आहुति देने की साधना, ज्ञान के आदान-प्रदान का कार्य माना जाता है क्योंकि ऐसा ज्ञानवान यानि आत्मा, परमात्मा और प्रकृति के विषय का तत्वज्ञ, ब्राहृ प्राप्ति सहजता से करने की योग्यता रखता है। यही तत्वदृष्टि ही सर्व को ब्राहृ भाव यानि समभाव से देखने की शक्ति होती है।
यही मनुष्य को असत्य ज्ञान धारणा व पाप कर्म करने से बचाए रखने का हेतु होती है इसलिए तो जिसने आत्मज्ञान/ब्राहृज्ञान प्राप्त कर लिया हो केवल वही ज्ञानी कहलाने के योग्य होता है। अंतत: उन्होंने कहा कि जो ब्राहृज्ञानी के पद को प्राप्त कर लेता है वह परमेकार स्वरूप हो जाता है और परमधाम पहुँच विश्राम को पाता है। अत: सब ऐसा बनने का अद य पुरूषार्थ दिखाओ।

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