रोज़ करें एक अच्छा काम

रोज़ करें एक अच्छा काम
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ब्रह्माकुमारी पूनम वर्मा

todaybhaskar.com
आज इंसान भौतिकता  के पीछे अपना सारा समय और शक्ति लगाता जा रहा है.संसाधनों और धन को एकत्रित करने की होड़ में अपना सुख और चैन सब गंवाता जा रहा है.भौतिक साधनों और धन  को ही अपने सुख का आधार समझता है और यह मान बैठा है  कि यही साधन ही उसके जीवन की पूंजी है और इसी कारण अपने अस्तित्व से और अपनों से दूर होता  जा रहा है|
यह भूल चुका  है कि उसके जीवन का उद्देश्य क्या है ? जैसे नदी अपना पानी स्वयं नहीं पीती,पेड़ अपना फल कभी नहीं खाता,सूर्य अपनी ऊर्जा खुद के लिए उपयोग नहीं करता ,वैसे ही मनुष्य का जीवन भी दूसरों को देने लिए है न कि लेने  के लिए .धन और साधन अर्जित  करना कोई बुरी बात नहीं लेकिन पूरा दिन व जीवन इसी में ही लगा देना यह जीवन का उद्देश्य नहीं है. हम इस चीज़ पर तो बहुत ध्यान देते हैं कि आज मैने कितना धन कमाया, लेकिन दुआ रूपी  पूंजी कितनी कमाई इस पर तो हमारा ध्यान भी नहीं जाता क्यूंकि सच्ची कमाई तो यही साथ जाती हैं.
लोग अक्सर कहते हैं कि आज के दौर में  स्वयं के लिए भी समय नहीं मिलता तो दूसरों के लिए क्या समय  निकालें .पर यह सदैव याद रखें जिस प्रकार धन को अर्जित करने में समय भी लगाना पड़ता हैं और शक्ति भी तभी हमें धन के सुख की प्राप्ति होती हैं.इसी प्रकार जब तक दूसरे के दिलों को नहीं जीतेंगे तो पुण्य की कमाई करना बहुत मुश्किल हैं क्यूंकि यही कमाई ही हमारे अच्छे भविष्य का आधार हैं .यदि हमारे व्यव्हार से दूसरे दुखी होते हैं, हमारे अपने ही हमसे दूर होते हैं, तो हमारे जीवन में सुख शांति कभी नहीं आ सकती क्यूंकि जब तक दूसरों को यदि हम सुख नहीं देंगे तो हमारे जीवन में सुख कभी नहीं आ सकता.
दुआ का खाता जमा  करने के लिए केवल एक बात का ध्यान रखें कि आज हमने अच्छा काम क्या किया ? कर्म व्यव्हार में तो हम सब आते ही हैं लेकिन केवल यह चेक करें कि  क्या मेरे व्यव्हार से दूसरों को सुख पहुँच रहा हैं? मान लीजिए कोई निराश व्यक्ति आपके पास आता हैं ऐसे में आप उसको हिम्मत देते हैं या  मार्गदर्शन करते हैं तो यह भी पुण्य कि पूंजी जमा करना हैं.आपको किसी ने कुछ गलत कहा लेकिन फिर भी आपने क्षमा भाव रखा या कल्याण की भावना रखी, यह भी आपने एक अच्छा काम किया. अपनों के लिए कुछ समय निकालते हैं तो उनको ख़ुशी भी मिलती हैं साथ ही दुआएं भी. अक्सर करके जब पूरा दिन थक कर घर  जाते  हैं तो हमारा व्यव्हार चिड़चिड़ा हो जाता हैं और आवेश में आकर हम क्रोध करने लगते हैं और घर का वातावरण बिगड़ जाता हैं जिससे परिवार वालों की नकारत्मक ऊर्जा हमारे खाते   में चली जाती हैं जिसकी वजह से हम खुद को भारी महसूस करते हैं. इसलिए  स्वयं के व्यवहार   को भी सरल और लचीला बनायें. रोज़ का यही लक्ष्य रखें की आज मैंने कुछ अच्छ कार्य ज़रूर करना हैं इसके अभ्यास से न केवल आपके संस्कार बदलेंगे बल्कि जीवन भी सरल,शांत और सुख से भरपूर होगा.

ब्रह्माकुमारी पूनम

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