-जीवन-यज्ञ को निर्विघ्न समपन्न करने की युक्ति
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Faridabad| भूपानी स्थित सतयुग दर्शन वसुन्धरा में रामनवमी-यज्ञ, वार्षिक-महोत्सव के अवसर पर हर्षोल्लास के साथ विशाल शोभायात्रा निकाली गई। यह शोभा-यात्रा जैसे ही समभाव-समदृष्टि के स्कूल कक्ष में पहुँची तो ट्रस्ट के मार्गदर्शक श्री सजन जी ने कहा कि सजनों आज का दिन हमारे लिए बहुत शुभ है| क्योंकि अब शीघ्र ही शुभारंभ होने जा रहा है – उस रामनौमी यज्ञ महोत्सव का जिसके अंतर्गत न केवल सजनों को, समभाव-समदृष्टि की युक्ति अनुसार, जीवन के परम पुरुषार्थ यानि परमपद प्राप्ति की सिद्धि का आवाहन दिया जाता है अपितु अपने-अपने गृहस्थाश्रमों में प्रसन्नता से जीवनयापन करने हेतु, सम, संतोष-धैर्य अपनाकर, सच्चाई-धर्म के निष्काम रास्ते पर चलते हुए किस प्रकार परोपकार कमाना है, उसकी युक्त भी समझाई जाती है।
इस यज्ञ महोत्सव की महत्ता के दृष्टिगत उन्होंने, इस यज्ञ उत्सव में देश-विदेशों से उपस्थित हर दुखिया/ सुखिया इंसान से जीवन के परम पुरूषार्थ को सिद्ध कर, इस जीवन-यज्ञ को निर्विघ्न समपन्न करने हेतु अन्दरुनी वृत्ति में नियम-नीतिनुसार परब्रह्मवाचक मूल-मन्त्र आद्-अक्षर का सिमरन करने व बैहरुनी वृत्ति में मन को परेशान करने वाली हर अच्छी व बुरी सोच त्याग, अफुरता में आने की गुजारिश करी ताकि समस्त अंतद्र्वन्द्व व बहिद्र्वन्द्व समाप्त हो जाएं।
इस प्रकार उन्होंने सबको अपने मन में असीम शांति का अनुभव करते हुए, आनन्दविभोर हो उस परम आनन्दित अवस्था का अनुभव करने के लिए कहा जिसके अंतर्गत आत्मा-परमात्मा की एकरूपता का एहसास हो जाता है और जीव सहसा ही कह उठता है च्च्हम एक हैं, हम एक हैं, हम एकता के प्रतीक हैं अर्थात् हम ब्रह्म हम…….हम ब्रह्म हाँ। तत्पश्चात् श्री सजन जी ने उपस्थित सजनों को अपने मस्तिष्क व आस-पास के संगी-साथियों को शांति व अफुरता से समवत्र्ती बनने का संदेश देने के लिए कहा ताकि सब के सब समभाव-समदृष्टि की युक्ति अनुसार परस्पर सजन-भाव का व्यवहार करने के प्रति दृढ़ संकल्पी हो जाएं और विचार, सत्त जबान, एक दृष्टि, एकता और एक अवस्था को धारण कर सतयुगी संस्कृति के अनुरूप एक अच्छे व नेक इंसान बन जाएँ। उन्होंने कहा कि इसी हितकारी स्वाभाविक बदलाव से न केवल आपकी शारीरिक-मानसिक स्वस्थता पनप सकती है अपितु आपके मन-चित्त में भी स्थाई प्रसन्नता का संचार हो सकता है।
यहाँ उन्होंने जहाँ शारीरिक स्वस्थता के लिए पुरुषार्थ द्वारा निरंतर क्रियाशील व उद्यमी बने रहने की आवश्यकता पर बल दिया, वहीं मानसिक स्वस्थता के लिए वेद-शास्त्रों के अध्ययन द्वारा सकारात्मक उच्च विचार धारण करने को भी नितांत अनिवार्य बताया। उन्होंने सजनों से कहा कि समस्त कारज परिश्रम से ही सिद्ध होते हैं, मात्र इच्छा करने से नहीं यानि परिश्रमी ही जीवन संग्राम में विजयी होता है। अत: ईश्वररूप होने का सच्चा और एकमात्र परम पुरुषार्थ दर्शाओ और इस हेतु अपनी समस्त शक्तियों द्वारा परिश्रम करने में जुट जाओ। शारीरिक स्वस्थता के साथ-साथ मानसिक स्वस्थता के विषय में स्पष्टीकरण देते हुए उन्होंने कहा कि मन-मस्तिष्क की तंदुरुस्ती के लिए वेद-शास्त्रों का अध्ययन कर आत्मिक ज्ञान प्राप्त करना उतना ही जरूरी है जितना शरीर के लिए आहार व व्यायाम। अध्ययन ही हमारे भावों, विचारों व मन को पवित्र कर हमें आनन्द प्रदान करता है, अलंकृत करता है और योग्यता प्रदान करता है। इसके बिना जीवन में आने वाले विषाद यानि दु:खों से निवृत्ति नहीं हो सकती। अत: सत् शास्त्र का विचार कर, सतत् चिंतन, मनन व अ5यास द्वारा, उसमें विदित आत्मिक ज्ञान को व्यवहार में लाओ। ऐसा करने से ही सत्य-असत्य, भले-बुरे की परख कर सकोगे यानि बुद्धि विचार प्रबलता धारण करेगी और विवेकशक्ति का प्रयोग करते हुए केवल सत्य धारणा को ही महत्व देगी। इस तरह अज्ञान अंधकार दूर होगा यानि मन व बुद्धि श्रेष्ठता को प्राप्त हो जाएगी और आप दिव्यता को धारण कर अमर पद प्राप्त करने के योग्य बन जाओगे।
श्री सजन जी ने आगे कहा कि ऐसा अद्भुत होने पर ही आपके लिए जगत के सब कार्यव्यवहार यानि अपने समस्त कर्तव्यों का पालन हँस कर करते हुए, अपने मन को प्रभु में लीन रख, निष्कंटक परमार्थ के रास्ते पर बने रहना सहज हो जाएगा। आशय यह है कि यह अदमय पुरुषार्थ दिखाने पर ही आप आत्मविश्वास के साथ, खुद पर आत्मनियन्त्रण रखते हुए, शक्तिशाली होकर, सत्य-धर्म के निष्काम भक्ति-भाव पर डटे रह पाओगे और एक नेक व ईमानदार इंसान की तरह, इस जगत में निर्लिप्तता से विचरते हुए, इसके माया-पाश से आज़ाद हो पाओगे। उन्होने कहा कि जानो यह च्च्विचार ईश्वर है अपना आपज्ज् के सर्वोच्च भाव को आत्मसात् कर, जगत उद्धार हेतु परमात्म स्वरूप में स्थित रहते हुए, समस्त कार्य ईश्वर के निमित्त अकर्ता भाव से करते हुए कर्म फल से मुक्त रहने की अद्वितीय बात होगी। तभी अपने व सबके सजन बन ईश्वर की सर्वोत्कृष्ट कृति कहलाने का सौभाग्य प्राप्त कर पाओगे और तीनों लोकों में यश-कीर्ति प्राप्त करने के अधिकारी बन एक श्रेष्ठ मानव की तरह यथार्थता में बने रह, यथार्थत: ही जीवन जीते हुए, यथार्थ पद को प्राप्त कर अपना नाम रोशन कर परमानन्द में स्थित हो विश्राम को पाओगे।
ट्रस्ट की प्रबन्धक न्यासी श्रीमती रेशमा गांधी ने बताया कि प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी रामनवमी महायज्ञ में काफ़ी सं2या में श्रद्धालु देश-विदेश से समिमलित हुए हैं। यहाँ श्रद्धालुओं के रहने, खाने-पीने व अन्य सुविधाओं का हर प्रकार से समुचित प्रबंध कर दिया गया है। यही नहीं शहर के प्रमुख रेलवे-स्टेशनों एवं बस-अड्डों से भक्तजनों को लाने के लिए विशेष बसों का भी इंतज़ाम किया गया है।