परचिन्तन पतन की जड़

परचिन्तन पतन की जड़
bk poonam verma
बी.के. पूनम वर्मा
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बी.के. पूनम वर्मा

बी.के. पूनम वर्मा
परचिन्तन एक ऐसी बीमारी है जिसमे अगर मनुष्य फंस जाये तो वही उसके पतन का कारण बन जाता है। वह परचिन्तन करना सुख समझता है, लेकिन कभी यह नहीं समझता की इस तरह वह अपने कीमती समय को नष्ट करता है।
परचिन्तन एक ऐसी बीमारी है जो लग गई तो बहुत नुकसान करती है। ऐसा व्यक्ति कभी दूसरों की नज़रों मे उंचा उठ नहीं सकता। वह नकरात्मक सन्कल्‍पों से वायुमंडल खराब करता है और दूसरो मे भी नकरात्मक वृति बनाने के निमित बनता है।इस प्रकार वह पाप का भागीदार बन जाता है और वह परमात्मा से भी दूर होता है तथा उसकी मदद से भी वंचित हो जाता है। परचिन्तन से वस्तुत: मनुष्य के अंतरिक दृष्टिकोण का मालूम लगता है कि वह किस प्रकार का व्यक्ति है।दूसरों कि निंदा करना वह अपना परम धर्म समझता है और कहता है कि फलाना बहुत बुरा है,फलाना अच्छा व्यक्ति नहीं है। कुछ देर के लिये मान भी लिया जाये कि सभी बहुत बुरे इंसान है। लेकिन परचिन्तन करने वाला व्यक्ति यह कभी नहीं सोचता कि क्या दूसरों कि बुराई करने से वह स्वयं अच्छा व्यक्ति कहलाया जायेगा ? अगर सारी दुनिया खराब है ओर एक मात्र वही अच्छा है तो अच्छे व्यक्ति दूसरों की बुराई न देख अच्छाई ही देखते हैं। इससे आप समझ सकते हैं कि परचिन्तन करने वाला व्यक्ति स्वयं किस श्रेणी में आता है।
एक कहावत है कि खाली दिमाग शैतान का घर है। जिन व्यक्तियों के पास खाली समय है और मन को किसी अच्छे कार्य में ना लगाकर वह दूसरों के चिंतन में समय लगते हैं तो समय भी ऐसे लोगों कि कद्र नहीं करता। कहा जाता है कि समय उसको मूल्यवान बनता है जो समय के मूल्य को पहचानते हैं। समय की कीमत ना पहचानने वाले व्यक्ति को समय भी मूल्यहीन बना देता है। ऐसे व्यक्ति को कोई पसंद ना करने के कारण वह किसी का माननीय भी नहीं बन सकता क्यूंकि वह एक दूसरे में फूट डलवाने के निमित्त बन जाता है अथवा आशान्ति फैलाने का कारक बन जाता है। कर्मों कि गति के अनुसार जो व्यक्ति आशान्ति बनाने का कारण बनता है वह कभी खुशी और चैन भरी ज़िंदगी नहीं जी सकता।
इसलिये हमें परचिन्तन कर कभी अपना समय बरबाद नहीं करना चाहिये। स्वचिन्तन कर अपनी इस बुराई को खत्म करना चाहिये और स्व -उन्नत्ति पर ध्यान देना चाहिये।यदि उसे दूसरों की बुराई नज़र भी आये तो भी उसे देखा अनदेखा कर देना चाहिये और उसकी बुराई को अच्छाई में बदलने की शुभ भावना रखनी चाहिये। ऐसा व्यक्ति ही परमात्म मदद का हकदार बनता है और समाज भी उसे उंच दृष्टि से देखता है। संकल्प शक्ति एक महान शक्ति है। संकल्प एक अमूल्य ख़ज़ाना है। यदि हम अपने संकल्पों को दूसरों के चिंतन मे नष्ट करेंगे तो गोया हम अपने ख़ज़ाने को नष्ट कर रहे हैं। इसलिये अपने संकल्पों को स्व-चिंतन और दूसरों के कल्याण में लगाना ही श्रेष्ठता  है।

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